Wednesday, September 19, 2018

नवगीत - अमन चाँदपुरी




चेहरा-पुस्तक पर
हम दिन भर
ड्यूटी करते हैं।।

मोबाइल को लिए
हाथ में
आँखें मींच रहे।
नोटिफिकेशन
की फुलवारी
को फिर सींच रहे।

चित्र देख
राधारानी का
कान्हा मरते हैं।।

शिल्प, भाव औ' बिम्ब
गीत का कहीं
खो गया है।
दिन भर ही
कुछ लिखते रहना
कर्म हो गया है।

आलोचक की
पड़ें न नज़रें
इससे डरते हैं।।

बार-बार
यह देखा करते
कितने मिले कमेंट।
और किए
कितने हैं हमने
क्या निकला परसेंट।

जो मेरी कविता
न पढ़े हम
उससे जरते हैं।।

जैसे ही
यामिनी निकाले
चादर बाहर पैर।
कह देते शुभ रात्रि
सभी से
या फिर शब्बा ख़ैर।

दिनचर्या
बाधित न हो सके
चार्जिंग करते हैं।।

~ अमन चाँदपुरी

Tuesday, September 11, 2018

ये दुनिया दर्द की मारी बहुत है

ग़ज़ल


ये दुनिया दर्द की मारी बहुत है
यहाँ रहने में दुश्वारी बहुत है

कोई आगाज़ है करता नहीं पर
सफ़र करने की तैयारी बहुत है

कभी नादाँ हुआ करते थे बच्चे
मगर अब इनमें हुशियारी बहुत है

मुख़ालिफ ही चली  मेरे हमेशा
हवाओं में ये बीमारी बहुत है

उठा पाये न इसको 'मीर' तक भी
ये पत्थर इश्क़ का भारी बहुत है

मेरे हालात चाहे जो हो लेकिन
'अमन' फ़ितरत में ख़ुद्दारी बहुत है

~ अमन चाँदपुरी

Friday, September 7, 2018

मुक्तक

खुल के हँसता हूँ और न रोता हूँ
जब कभी मैं उदास होता हूँ
अब तुम्हें याद ही नहीं करना
रोज ये खुद से कह के सोता हूँ
~ अमन चाँदपुरी

Wednesday, September 5, 2018

दोहे : शिक्षक दिवस

दोहे ~


(1)
सप्त द्वीप नव खण्ड में, गुरु ही मात्र महान।
अंतर्मुख कर शिष्य को, गुरु ही देता ज्ञान।।

(2)
गुरु-सा कोई है नहीं, ‘अमन’ कहें हर संत।
गुरु ही तीनों रूप है, आदि मध्य औ’ अंत ।।

(3)
गुरु बिन मिले न मुक्ति है, गुरु बिन मिले न ज्ञान।
पढ़ चाहे जितना ‘अमन’, वेद और कुरआन।।

(4)
कृपा-दृष्टि गुरु की मिले, खुलें ज्ञान के द्वार।
गुरु के आगे मौन सब, वहीं सृष्टि का सार।

(5)
गुरु बिन दर-दर फिर रहा, पग-पग खाता चोट।
चल अमना गुरु की शरण, दूर करें हर खोट।।

~ अमन चाँदपुरी

नवगीत - अमन चाँदपुरी

चेहरा-पुस्तक पर हम दिन भर ड्यूटी करते हैं।। मोबाइल को लिए हाथ में आँखें मींच रहे। नोटिफिकेशन की फुलवारी को फिर सींच रहे। च...