Tuesday, September 11, 2018

ये दुनिया दर्द की मारी बहुत है

ग़ज़ल


ये दुनिया दर्द की मारी बहुत है
यहाँ रहने में दुश्वारी बहुत है

कोई आगाज़ है करता नहीं पर
सफ़र करने की तैयारी बहुत है

कभी नादाँ हुआ करते थे बच्चे
मगर अब इनमें हुशियारी बहुत है

मुख़ालिफ ही चली  मेरे हमेशा
हवाओं में ये बीमारी बहुत है

उठा पाये न इसको 'मीर' तक भी
ये पत्थर इश्क़ का भारी बहुत है

मेरे हालात चाहे जो हो लेकिन
'अमन' फ़ितरत में ख़ुद्दारी बहुत है

~ अमन चाँदपुरी

2 comments:

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  2. बहुत सुन्दर!👌👌💐💐

    ~ कैलाश झा किंकर

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