दोहे ~
(1)
सप्त द्वीप नव खण्ड में, गुरु ही मात्र महान।
अंतर्मुख कर शिष्य को, गुरु ही देता ज्ञान।।
(2)
गुरु-सा कोई है नहीं, ‘अमन’ कहें हर संत।
गुरु ही तीनों रूप है, आदि मध्य औ’ अंत ।।
(3)
गुरु बिन मिले न मुक्ति है, गुरु बिन मिले न ज्ञान।
पढ़ चाहे जितना ‘अमन’, वेद और कुरआन।।
(4)
कृपा-दृष्टि गुरु की मिले, खुलें ज्ञान के द्वार।
गुरु के आगे मौन सब, वहीं सृष्टि का सार।
(5)
गुरु बिन दर-दर फिर रहा, पग-पग खाता चोट।
चल अमना गुरु की शरण, दूर करें हर खोट।।
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